astitav [gatank se aage] kahani
अस्तित्व [गतांक से आगे]
मुझे भूख नहि है1बकी सब को खिला दे"कह कर मै उठ कर बैठ गयी
नंद बाहर गये हुये थे1बहुयों बेटों के पास समय नही था कि मुझे पूछते कि खाना क्यों नही खाया1 नंद ने जो प्लाट बडे बेटौं के नाम किये थे उन पर उनकी कोठियां बन रही थी जिसकी निगरानी के लिये नंद ही जाते थे1इनका विछार था कि घर बन जायेम हम सब लोग वहीं चले जायेंगे1
नींद नही आ रही थी लेटी रही मैने सोच लिया था कि मैं अपने स्वाभिमान के साथ ही जीऊँगी मैम नण्द के घर मे एक अवांछित सदस्य बन कर नहीं बल्कि उनक गृह्स्वामिनी बन् कर ही रह सकती थी1इस लिये मैने अपना रास्ता तलाश लिया था1
सुबह सभी अपने अपने काम पर जा चुके थे1मैं भी त्यार हो कर शिवालिक बोर्डिंग स्कूल के लिये निकल पडी1ये स्कूल मेरी सहेली के पती म्र.वर्मा का था1मैं सीधी उनके सामने जा खडी हुई1
'"नमस्ते भाई सहिब"
नमस्ते भाभीजी,अप?यहाँ! कैसी हैं आप? बैठिये 1 वो हैरान हो कर खडे होते हुये बोले1
कुछ दिन पहलेआशा बता रही थीकि आपके स्कूल को एक वार्डन की जरूरत है1क्या मिल गई?"मैने बैठते हुये पूछा
"नहीं अभी तो नही मिली आप ही बताईये क्या है कोई नज़र मे1"
"तो फिर आप मेरे नाम का नियुक्ती पत्र तैयार करवाईये1"
"भाभीजी ये आप क्या कह रही हैं1आप वार्डन की नौकरी करेंगी?"उन्होंने हैरान होते हुये पूछा1
हाँागर आपको मेरी क्षमता पर भरोसा है तो1"
"क्या नंद इसके लिये मान गये हैांअपको तो पता है वार्डन को तो 24 घन्टे हास्टल मे रहना पडता हैआप नंद को छोड कर कैसे रहेंगी?"
ीअभी ये सब मत पूछिये अगर आप मुझे इस काबिल मानते हैं तो नौकरी दे दीजिये1बाकी बातें मैं आपको बाद में बता दूँगी:
"आप पर अविश्वास का तो प्रश्न ही नही उठता आपकी काबलियत के तो हम पहले ही कायल हैं1ऐसा करें आप शाम को घर आ जायें आशा भी होगी1अपसे मिल कर खुश होगी अगर जरूरी हुआ तो आपको वहीं नियुक्ती पत्र मिल जायेगा"
ठीक है मगर अभी नंद से कुछ मत कहियेगा1"कहते हुये मै बाहर आ गयी
घर पहुँची एक अटैची मे अपने कपडे और जरूरी समान डाला और पत्र लिखने बैठ गयी--
नंदजी,
अंतिम नमस्कार्1
आज तक हमे एक दूसरे से क्भी कुछ कहने सुनने की जरूरत नहीं पडी1 आज शायद मैं कहना भी चाहूँ तोीआपके रुबरु कह नहीं पाऊँगी1 आज आपकी अलमारी में झांकने की गलती कर बैठी1अपको कभी गलत पाऊँगी सोचा भी नहीं था आज मेरे स्वाभिमान को आपने चोट पहुँचाई है1जो इन्सान छोटी से छोटी बात भी मुझ से पूछ कर क्या करता थावो आज जिन्दगी के अहम फैसले भी अकेले मुझ से छुपा कर लेने लग है1मुझे लगता है कि उसे अब मेरी जरुरत नहीं है1अज ये भी लगा है कि शादी से पहले आप अकेले थे एक जरुरत मंद आदमी थे जिन्हें घर बसाने के लिये सिर्फ एक औरत की जरूरत थी अर्धांगिनी की नहीं1 ठीक है मैने आपका घर बसा दिया है1पर् आज मै जो एक भरे पूरे परिवार से आई थी आपके घर में अकेली पड गयी हूँ1तीस वर्ष आपने जो रोटी कपडा और छत दी उसके लिये आभारी हूँ1किसी का विश्वास खो कर उसके घर मे अश्रित हो कर रहना मेरे स्वाभिमान को गवारा नही1मुझे वापिस बुलाने मत आईयेगा,मैम अब वापिस नहीं आऊँगी1 अकारण आपका अपमान हो मुझ से अवमानना हो मुझे अच्छा नहीं लगेगा1इसे मेरी धृ्ष्ट्ता मत समझियेगा1ये मेरे वजूद और आत्मसम्मान क प्रश्न है1खुश र्हियेगा अपने अहं अपनी धन संपत्ती और अपने बच्चों के साथ्1
जो कभी आपकी थी,
रमा1
मैने ये खत और वसीयत वाले कागज़ एक लिफाफे मे डाले और लिफाफा इनके बैड पर रख दिया1ापना अटैची उठाया और नौकर से ये कह कर निकल गयी कि जरूरी काम से जा रही हूँ1मुझे पता था कि नंद एक दो घन्टे मे आने वाले हैं फिर नहीं निकल पाऊँगी1ाउटो ले कर आशा के घर निकल पडी--क्रमश
हम तो दुखी होते जा रहे हैं. किसी का घर छोड़ जन अच्छा थोड़े ही लगेगा.आगे देखते हैं. आभार.
ReplyDeleteSAHI KAHA HAI SUBRAMANIAN SAHAB NE ESA ACHHA NAHI LAGATA ... AAPKI RACHNA KE AGALE BHAG KA INTAZAAR RAHEGA....
ReplyDeleteREGARDS
ARSH
सत्य हो या काल्पनिक, अत्यन्त प्रवाहमय और विचारोत्तेजक कथानक है। नायिका, पाठक को अपने साथ-साथ लिए चल रही है और जैसा वह चाह रही है, पाठक वैसा ही सोच रहा है।
ReplyDeleteअच्छा प्रवाह है कहानी में.....लिखते जाएं।
ReplyDeleteबहुत हद तक सब से संबद्ध कथा जैसी। आपने पढ़ने वालों को साथ ले लिया है, ठीक कह रहे हैं लोग। बधाई।
ReplyDeleteachchha lagaa...
ReplyDeletevery very beautiful write up. keep it up.
ReplyDeleteरंगों की मदमस्त फुहार - सबके माथे अबीर- गुलाल
ReplyDeleteहोली की बधाई