एहसास
बस मे भीड थी1 उसकी नज़र सामनीक सीट पर पडी जिसके कोने मे एक सात आठ साल का बच्चा सिकुड कर बैठा था1 साथ ही एक बैग पडा था'बेटे आपके साथ कितने लोग बैठे हैं/'शिवा ने ब्च्चे से पूछा जवाब देने के बजाये बच्चा उठ कर खडा हो डरा सा.... कुछ बोला नहीं 1 वो समझ गया कि लडके के साथ कोई हैउसने एक क्षण सोचा फिर अपनी माँ को किसी और सीट पर बिठा दिया और खाली सीट ना देख कर खुद खडा हो गया1
तभी ड्राईवर ने बस स्टार्ट की तो बच्चा रोने लगा1 कन्डक्टर ने सीटी बजाई ,एक महिला भग कर बस मे चढी उस सीट से बैग उठाया और बच्चे को गोद मे ले कर चुप कराने लगी1उसे फ्रूटी पीने को दी1बच्चा अब निश्चिन्त हो गया था1 कुछ देर बाद उसने माँ के गले मे बाहें डाली और गोदी मे ही सोने लग गया1 उसके चेहरे पर सकून था माँ की छ्त्रछाया का.....
'' माँ,मैं सीट पर बैठ जाता हूँ1मेरे भार से तुम थक जाओगी1''
''नहीं बेटा, माँ बाप तो उम्र भर बच्चों का भार उठा सकते हैं1 तू सो जा1''
माँ ने उसे छाती से लगा लिया
शिवा जब से बस मे चढा था वो माँ बेटे को देखे जा रहा था1उनकी बातें सुन कर उसे झटका सा लगा1 उसने अपनी बूढी माँ की तरफ देखा जो नमआँखों से खिडकी से बहर झांक रही थी1 उसे याद आया उसकी माँ भी उसे कितना प्यार करती थी1 पिता की मौत के बाद माँ ने उसे कितनी मन्नतें माँग कर उसे भगवान से लिया था1 पिता की मौत के बाद उसने कितने कष्ट उठा कर उसे पल पढाया1 उसे किसी चीज़ की तंगी ना होने देती1जब तक शिव को देख न लेती उसखथ से खाना ना खिल लेती उसे चैन नहिं आता1 फिर धूम धाम से उसकी शादी की1.....बचपन से आज तक की तसवीर उसकी आँखों के सामने घूम गयी1
अचानक उसके मन मे एक टीस सी उठी........वो काँप गया .......माँकी तरफ उस की नज़र गयी......माँ क चेहरा देख कर उसकी आँखों मे आँसू आ गये....वो क्या करने जा रहा है?......जिस माँ ने उसे सारी दुनिया से मह्फूज़ रखा आज पत्नी के डर से उसी माँ को वृ्द्ध आश्रम छ्होडने जा रहा है1 क्या आज वो माँ क सहारा नहीं बन सकता?
''ड्राईवर गाडी रोको""वो जूर से चिल्लाया
उसने माँ का हाथ पकडा और दोनो बस से नीचे उतर गये1
जेसे ही दोनो घर पहुँचे पत्नी ने मुँह बनाया और गुस्से से बोली''फिर ले आये? मै अब इसके साथ नहीं रह सकती1'' वो चुप रहा मगर पास ही उसका 12 साल का लडका खडा था वो बोल पडा....
''मम्मी, आप चिन्ता ना करें जब मै आप दोनो को बृ्द्ध आश्रम मे छोडने जाऊँगा तो दादी को भी साथ ही ले चलूंगा1 दादी चलो मेरे कमरे मे मुझे कहानी सुनाओ1'' वो दादी की अंगुली पकड कर बाहर चला गया..दोनो बेटे की बात सुन कर सकते मे आ गये1 उसने पत्नी की तरफ देखा.....शायद उसे भी अपनी गलती का एहसास हो गया था1निर्मला कपिला
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बड़ी दर्दनाक स्थति है वृद्धों की. काश आजकल की एकल परिवारें उन्हें अपना सकतीं.
ReplyDeleteबडी ही कारूणिक कहानी है ... पर आज की हकीकत ... पता नहीं कल तक दादा दादी नाना नानी का प्यार पानेवाले युवकों युवतियों का इस हद तक चारित्रिक पतन कैसे हो गया ?
ReplyDeleteis kahani ke maadhyam se kartavya ki shikshaa di hai,bahut khoob
ReplyDeleteबुरा ना मानें, कहानी अच्छी है किंतु बहुत कुछ स्टीरियोटाइप्ड भी है. ऐसे मां पिता और संतान हर जगह नहीं मिलेंगे.
ReplyDeleteअपवादों से जीवन की कहानी नहीं चलती. बुरा ना मानें, यह एक प्रसंग हो सकता है, सर्वमान्य हकीकत नहीं.
भारत में पांव पसारती यह नई बीमारी , यह व्यथा नई है । इस कथानक पर नई कहन के साथ कही यह कहानी प्रभाव छोड़ती है । लघु कथाओं के माध्यम से ही भारतीय कहानी की सिक्छा देने की परम्परा शेष है । बधाई
ReplyDeletemain premchand G se ek baat kehni chahunga. writer sirf vo likhta hai jo vo dekhta hai, jo vo sochta hai. aur jo vo logo ko dikhana chahta hai. ye nahi hai ki main apse asahmat hu. magar ek guzarish hai, agar kabhi samay nikle to kisi vridh ashram main jakar kisi buzurg se milkar jarur dekhiyega.
ReplyDeletenice one... a lesson to all .....thanks
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