मदर्ज़ -डे
अब बुढापे मे कोइ ना कोई रोग तो लगा ही रहेगा! सावन के महीने मे शिव मंदिर रोज़ जाती हूँ1 सुबह मंदिर से आने मे देर हो गयी1्रात से ही लग रहा था कि बुखार है1 अते हुये रास्ते मे जरा बैठ गयी1 घर आने मे देर हो गयी1 घर पहुँची तो बहू बेटा दफ्तर के लिये जा चुके थे1 काम वाली मेरा ही इन्तज़ार कर रही थी मेरे आते ही वो भी चली गयी1ब्च्चे भी स्कूल चले गये थे1 चाय बनाने की भीहिम्मत नही थी सो ल्लेट गयी1 पता नही कब आँख लग गयी1 दोपहर को बच्चे स्कूल से आये तो घँटी की आवाज़ सुन कर उठी1 शरीर बुखार से तप रहा था1 किसी तरह ब्च्चों को खाना खिला कर अपने लिये तुलसी वाली चाय बनाई1 लेट गयी सोचा शाम को बहु बेटा आयेंगेतो डाक्टर को दिखा लायेंगे1 बच्चों को अकेले छोद कर जाती भी कैसे1
शाम को पाँच बजे काम वाली आयऔर आते ही बोली 'माँजी मै सुबह बताना भूल गयी थी बहुरानी कह रही थी कि आज दोनो दफ्तर से सीधे अपने मायके जाएंगे खाने का इन्तज़ार ना करें1 आज वो मदर्ज़--डे है ना1बहु ने अपनी माँ को विश करने जाना है1 पार्टी भी है वहाँ1
वो क्या होता है मुझे देसी भाशा मे बता1
वो माँजी आज्कल के बच्चों के पास माँ-बाप के लिये समय तो है नहींइस लिये साल मे एक दिन कभी मदर्ज़ -डे और कभी फादर्ज़ -डे मना लेते हैंबस विश क्या कार्ड दिया और साल भर की छुट्टी1 ये सब पढे लिखों के चोंचले हैं1
मै सोच मे पड गयी1 अनपढ या सीधी सादी औरत क्या माँ नही होती 1 मुझे तो किसी ने विश नही किया1मन बुझ सा गया1 फिर सोचा च्लो मदर्ज़-डे है मोथेर होने के नाते मेरा कर्तव्य बनता है कि मै ब्च्चों की भावनाओं का ध्यान रखूं1 बुखार ही है कल डा. को दिखा लूँगी1 अब पढी लिखी बहु और उसके अमीर मायके के रिती रिवाज़ तो पूरे करने ही पडेंगे1 बेटा भी क्या करे
LAHOO LOOHAAN KAR DIYAA AAPNE IS LAGHU KATHAA ME ... KIS ADAMYATA KA PRICHAY DIYAA HAI AAPNE... MAA TO AAKHIR MAA HI HOTI HAI NAA.. ISKA TO KOI MISHAAL HI NAHI...
ReplyDeleteARSH
भावुक कर दिया अपने...वैसे मदर्स दे आदि सब पश्चिम के व्यापारिक चोंचले हैं....हम भारतियों के लिए तो हर रोज मदर्स दे होता है...
ReplyDeleteनीरज
आपकी पोस्ट पढ़कर सचमुच मै भावुक हो गया हूँ . मदर्स डे पर भावपूर्ण पोस्ट. के लिए आभार.
ReplyDeleteNirmala ji
ReplyDeleteMother's day par bahut hi achchhi laghu katha prastut ki hai, dilko chhoo gai. Bahai sweekaren.
वो माँजी आज्कल के बच्चों के पास माँ-बाप के लिये समय तो है नहींइस लिये साल मे एक दिन कभी मदर्ज़ -डे और कभी फादर्ज़ -डे मना लेते हैंबस विश क्या कार्ड दिया और साल भर की छुट्टी1 ये सब पढे लिखों के चोंचले हैं1
ReplyDelete.....कटु सत्य
आप को हमारा प्रणाम. happy mothers' day.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर मैं तो सचमुच ही भावुक हो गया हूँ.
ReplyDeleteमदर्स डे पर भावपूर्ण पोस्ट के लिए आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
यह सच है कि हमारे लिए हर रोज मदर्स डे होता है लेकिन मदर्स डे पर माँ को विश कर लेना या गुलदस्ता, कार्ड या अन्य कोई उपहार दे देना अनुचित तो नहीं कहा जा सकता - भले ही यह पश्चिमी सभ्यता की नकल हो. कहानी में आपत्तिजनक बात यह है कि लड़का- बहू ,बहू के मायके बहू की माँ को विश करने तो चले गए लेकिन घर में पड़ीं माँ की चिंता नहीं की. महत्त्व दोनों की माँ को दिया जाना चाहिए था.
ReplyDeleteHar roj motehr's dya hota hai kya hamare yanha? Aur fir card pana phool pana kise achcha nahee lagta bhawbharee posting.
ReplyDeleteहमारे देश में तो इस तरह की फोरमल्टी की जरूरत नहीं है क्यूंकि हमारे यहाँ तो माता पिता को रोजाना चरण सपर्श करके ही बहार निकलना होता है..!हाँ विदेशों में तो माँ से मिलते ही मदर्स डे पर है..सो एक दिन मना लेते है..कोई न कोई डे....
ReplyDelete"वो माँजी आज्कल के बच्चों के पास माँ-बाप के लिये समय तो है नहींइस लिये साल मे एक दिन कभी मदर्ज़ -डे और कभी फादर्ज़ -डे मना लेते हैंबस विश क्या कार्ड दिया और साल भर की छुट्टी1 ये सब पढे लिखों के चोंचले हैं. "
ReplyDeletesamaj ke yatharth ko sashkt roop se chitrit kiya hai.
Nirmalaji ,in our country a male is by and large controlled by the female.It is a rule rather than an exception.One feels proud of sons and considers them different,but they belong to HER,the beloved wife.so never mind .virendra sharma(veerubhai1947.blogspot.com)
ReplyDeleteदेर से ही सही, आपको भी मदर्स डे की बधाई!
ReplyDeleteबस निर्मलाजी इंतेज़ार किजीये उनके बूढापे का जो अपने मैके को ज़्यादा प्राधान्य देते हैं ससुराल से कहीं ज़्यादा।
ReplyDeleteउनके बच्चे ये सब ग़ौर से देखते है। आनेवाला वक़्त सब कुछ समज़ा देगा उन्हें।आपकी पोस्ट बडी भावुक है और आपभी।
आपकी लघु कथा अत्यंत सराहनीय एवं विचारशील है, ढेरों शुभकामनाएं |
ReplyDelete... आपके ब्लॉग में आना और पढना अच्छा लगा.
ReplyDeleteवो माँजी आज्कल के बच्चों के पास माँ-बाप के लिये समय तो है नहींइस लिये साल मे एक दिन कभी मदर्ज़ -डे और कभी फादर्ज़ -डे मना लेते हैंबस विश क्या कार्ड दिया और साल भर की छुट्टी1 ये सब पढे लिखों के चोंचले हैं
ReplyDeletesach likha h..karara vyangya bhi hai..upar ek comment bhi bilkul sahi likha hai...aise din banana wahin zaruri ho sakta hai jahan paaramparik taur pe hi mata-pita aur unke bachchon ko alag alag karke dekha jata ho...apne yahan to mata-pita hi saare parivaar ko represent karte hain..kitni swasth si parampara hai....bachpan mein main discovery kids dekha karta tha...usmein ek baat mujhe kabhi samajh nahin aati thi...>>..usme bachche kahte the "hum aaj daadi ke ghar ja rahe hain"..<<...bhai ye mujhe samajh hi nahin aata..ek hi shahar mein rahte hue alag ghar me kyon bhala..daadi ka aur apna ghar kya alag hota hai??..mere parents ki job dusre shahar me hone k kaaran hum log alag hi rahe hain..lekin chhuttiyon mein delhi jate the..tab mummy ne yahi sikhaya ki "beta, APNE GHAR ja rahe hain" ya "beta DAADI KE PAAS ja rahe hain" (daadi ke ghar nahin)...to ye ek sahi cheez hai..jahan mata-pita hon, ghar to wahin hota hai..