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Sunday, October 3, 2010

अनुवाद-- पाती अडिये बाजरे दी मुट्ठ

 अनुवाद --पंजाबी पुसतक' पाती अडिये बाजरे दी मुट्ठ्'-- गुरप्रीत गरेवाल --का हिन्दी अनुवाद।
अनुवाद के क्षेत्र मे ये मेरा पहला प्रयास है। आशा है आप मेरा उत्साह जरूर बढायेंगे। इसे सीधी श्री गुरप्रीत गरेवाल जी की पुस्तक --'पाती अडिये बाजरे दी मुट्ठ"-- [पंजाबी]{ जिसके बारे मे आपको पहली पोस्ट मे बता चुकी हूँ।} के आलेखों से ही शुरू किया है। प्राकथ्थन,आशीर्वाद और लेखक की कलम से वाली पोस्ट सब से अन्त मे डालूँगी। धन्यवाद।


बन्दे आईना देखा कर
गाडी मे पंजाबी गीत गूँज रहा था"नित नित नी बजारीं औणा बिल्लो खा लै नाशपातियां' [ अर्थात कि हमने रोज़ रोज़ बाजार नही आना ,बिल्लो नाशपातियाँ खा ले} । मै अपने कुछ दोस्तों के साथ जालन्धर जा रहा था ,एक साहित्यिक समागम मे शामिल होना था।गाडी मे साथ सफर कर रहे रंगकर्मी स़. फुलवन्त मनोचा जी ने बहुत विनम्रता से पूछा -- सोढी साहिब का कार्ड आया? '
'अपनी नही बनती किसी सोढी साढी से"  
फुलवन्त जी चुप कर गये। रात नौ बजे हम जालन्धर से वापिस आये। मैने आते ही दरवाजे पर लगा ताला खोला तो जापान के  शहर ओसाका से आये एक खूबसूरत पत्र और नव वर्ष के कार्ड ने मेरा स्वागत किया। ये कार्ड एवं पत्र प्रवासी पंजाबी शायर परमिन्द्र सोढी ने भेजा था। मुझे बहुत शर्म आयी और पंजाबी की मशहूर कहावत याद आयी  इक'चुप सौ सुख"। आदमी बिना सोचे समझी कई बार  कितना कुछ बोल देता है। खैर कडाके की ठँड मै अरामदेह रजाई मे सोने का प्रयास करने लगा। मगर फिर एक बजे उठा ,कमरे की बत्ती जलाई । सोढी को रंग-विरंगे स्केच पेन से एक पत्र लिखा। मैने उसे हूबहू   पूरी बात लिख दी।
  लगभग चार महीने बाद सोढी भारत आया। एक शाम उसका फोन आया । सोढी ने बहुत विनम्रता के साथ पूछा--'कुछ वक्त दे सकोगे?' मै आलू न्यूट्रिला को छौंक लगा रहा था। मैं कडाही मे कडछी छोड कर 'लवर्ज़ पवाईँट' जा पहुँचा। नंगल डैम की सतलुज झील के किनारे  स्थित लवर्ज़ प्वाईँट बहुत खूबसूरत स्थान है। यहाँ बहुत सुन्दरता और शाँति है। रात दस बजे महफिल जमी।सोढी एवं प्रोफेसर मिन्द्र बागी ने आदमी की ज़िन्दगी और बन्दगी के बारे मे गज़ब की बातें सुनाई। जाते जाते शायर सोढी कह गया--'जापान मे आपका स्वागत है, जब कहोगे वीज़ा भेज दूँगा"। महफिल समाप्त हुयी। मैं पैदल चलते हुये घर पहुँचा, सोच रहा था कि आदमी भी क्या चीज़ है! कभी अच्छा सोचता ही नही। जरूरी नही जिनके साथ आपकी जानपहचान या बनती हो वही अच्छा हो।
   अप्रेल महीने मे बोतल, ब्रश,और दरख्तों के लाल लाल फूल देखने वाले होते हैं। घागस के मछली बीज फार्म{ जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश} मे पहुँचते ही लाल लाल फूलों को देखते ही हमारे चेहरे खिल गये। घागस एक छोटा सा कसबा है जो मनाली जाते हुये बरमाणा के बाद आता है। जा तो मनाली ही रहे थे मगर लंदन से आये घुमक्कड सैलानी स. गुर्दीप सिंह सन्धू ने घागस  मे ही घमासान मचा दिया। हुक्म हुया कि एक रात यहीं रहेंगे।  मछली बीज फार्म ध्योली मे एक छोटा सा गेस्ट हाऊस भी है। हमने कमरा ले लिया। कमरे मे जाते ही उसने फिर शोर मचा दिया कहा कि ये नही वो कमरा चाहिये। घाट घाट का पानी पीने वाले सन्धू साहिब ने बहुत समझाया कि बाबा एक दिन काट लो क्यों शोर मचा रहे हो?मगर आदमी का अहं और ज़िद्द कहाँ  रहने  देती है " मै तो हद दरजे का ज़िदी  --- मै पैसे वाला--- ,बस नही माना।
मैं प्रबन्धक के कमरे मे गया। पत्रकारी की  फिरकी घुमाने के अतिरिक्त प्रबन्धक को मैने उन गेंदों की जानकारी दी जो मैने समय समय पर सरहिन्द की दीवार पर मारी थीं। बात इतनी की प्रबन्धकों ने वहाँ पहले से रह रहे एक सज्जन को कमरा खाली करने का हुक्म सुना दिया। उस शरीफ आदमी ने 10--15 मिन्ट मे कमरा बदल लिया। उस भद्र पुरुष ने लुँगी पहन रखी थी और कागज़- पत्रों का काफी  झमेला डाल रखा था।। खैर हमने मनपसंद कमरा ले लिया। रात घागस के एक मशहूर ढाबे से मक्की की रोटी और देसी घी वाली माँह की दाल खाई। देसी घी की दाल वाला ये ढाबा 24 घन्टे खुला रहता है। खाना खाने के बाद सैर करते हुये मेरी मुलाकात उस भद्र पुरुष से हो गयी।
मुलाकात क्या हुयी मेरे लिये तो डूब  मरने जैसी नौबत आ गयी। लुँगी वाला भद्र पुरुष भारत सरकार  का वैग्यानिक  डा. ए लक्षमी नारायण था। सैंट्रल मैराईन फिशरी रिसर्च इन्स्टीच्यूट कोचीन [केरल} मे बतौर प्रिंसीपल रहे डा. लक्षनी नारायण हिमाचल प्रदेश के 36 दिन के दौरे पर थे। उन्होंने केन्द्र सरकार को ये रिपोर्ट देनी थी कि हिमाचल मे मछली का और उत्पादन कैसे बढ सकता है। इस वैग्यानिक ने मुझे केरल आने का भी आमन्त्रण दिया। देसी घी और माँह की दाल खाओ तो चढ  जाती है-- घूक-- घूक -घूक,  मगर मुझे रात भर नींद नही आयी। सन्धू साहिब तो गलास पी कर कब के सो गये थे। मैं पूरी रात सोचता रहा कि मन क्यों बेचारे वैग्यानिक को तंग करना था, हम तो उस कमरे मे भी ठीक थे। पराँठे  फाडते हुये आधी उम्र बीत गयी मगर अहं और ज़िद्द की दुकान पर ही अटके रहे। कभी पूछा ही नही अक्ल की दुकान का पता।



32 comments:

  1. गुरप्रीत जी को पढ़ना बहुत ही अच्छा लगा ... ठेठ पंजाबी अंदाज़ में लिखा है ..... आपका बहुत धन्यवाद इस अनुवाद के लिए ....

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  2. .

    @--पराँठे फाडते हुये आधी उम्र बीत गयी मगर अहं और ज़िद्द की दुकान पर ही अटके रहे। कभी पूछा ही नही अक्ल की दुकान का पता।..

    मजेदार अनुवाद ...अगले पार्ट का इंतज़ार रहेगा।

    .

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  3. आपके माध्यम से यह लाजवाब संस्मरण पढ़ने का अवसर मिल रहा है वरना मुझे तो पंजाबी आती नहीं ! किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ समझ नहीं पा रही हूँ ! अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा ! हम जैसे तो अनुवाद पर ही आश्रित हो सकते हैं ! बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति ! आभार !

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  4. इतना अच्छा अनुवाद किया है कि पढ़ने में मजा आ गया। पंजाबी आती तो है पर शायद इस तरह लिखा न पढ़ सकूं...आप तो अनुवाद करने में भी माहिर हैं...अगली किश्त का इंतजार रहेगा

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  5. सुन्दर प्रस्तुति. शायद यह मूल से भी अधिक रोचक बन पड़ा है

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  6. जहाँ तक मैंने सुनी है, पंजाबी काफी हद तक हिंदी से मिलती जुलती ही होती है, उसमें उर्दू के शब्द भी काफी होतें है. आपका अनुवाद भी जुबानी हिंदी, या कहें की जुबानी हिन्दुस्तानी में रखे तो बेहतर. यह कड़ी तो खासी अच्छी रही. इसी तरह जारी रखिये ....

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  7. bahut badhiya anuvaad....rochak prastuti...

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  8. बहुत रोचकता के साथ अनुवाद किया है आपने. बधाई...आगे भी इन्तजार रहेगा.

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  9. मौलिक कृति का आकर्ष अनुवाद में दिखा।

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  10. माँ जी! आपकी पंजाबी से हिंदी में अनुवाद की प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी .. गरेवाल जी को पढना बहुत अच्छा लगा...
    सार्थक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार........

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  11. आपकी मेहनत जाया नहीं जायेगी। रोचक लगी यह प्रस्तुति।
    अगली कडि़यों का इंतज़ार रहेगा।

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  12. बेहद रोचक प्रस्तुति! सचमुच एकदम बढिया...पंजाबी तडका टाईप :)

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  13. mujhe panjabi bahut priy hai aur is kahani ko padhkar aanand aa gaya .sondhi sondhi khushboo aane lagi wahan ki mitti ki .kuchh baate dil ko chhoo gayi jo chhoti thi magar aham thi .sundar .

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  14. स्त्रोत भाषा के पाठ के बगैर,यह कहना मुश्किल होगा कि अनुवाद किस हद तक सही है। परन्तु,यह एक बड़ी सफलता मानी जा सकती है कि प्रस्तुत सामग्री अनूदित है,ऐसा लगता ही नहीं है।

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  15. मक्के की रोटी,दाल और घी का कमाल हम राष्ट्रमंडल खेलों में भी देख रहे हैं। खैर,अच्छा अनुवाद है। जारी रखा जाए। मूल विषय से इतर भी काफी जानकारी मिल सकने की उम्मीद बंधी है।

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  16. :)...aapne to bahut kuchh ssasan kar diya !!! mere blog par aapka swagat !!!

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  17. आपका प्रयास सराह्नीय है । मुझे लगता है जिसने भी इसको पढा है या पढेगा , उसको अगले अंक का इंन्तजार अवश्य होगा ।

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  18. सराहनीय प्रयास :) आपने एक रोचक पुस्तक का चयन कर उसे रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया. आभार

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  19. जय श्री कृष्ण...आपका लेखन वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं....नव वर्ष आपके व आपके परिवार जनों, शुभ चिंतकों तथा मित्रों के जीवन को प्रगति पथ पर सफलता का सौपान करायें .....मेरी कविताओ पर टिप्पणी के लिए आपका आभार ...आगे भी इसी प्रकार प्रोत्साहित करते रहिएगा ..!!

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  20. आदरणीया निर्मला कपिला जी ! यदि आप 'प्यारी मां' ब्लॉग के लेखिका मंडल की सम्मानित सदस्य बनना चाहती हैं तो
    कृपया अपनी ईमेल आई डी भेज दीजिये और फिर आपको निमंत्रण भेजा जाएगा । जिसे स्वीकार करने के बाद आप इस ब्लाग के लिए लिखना शुरू
    कर सकती हैं.
    यह एक अभियान है मां के गौरव की रक्षा का .
    मां बचाओ , मानवता बचाओ .

    http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/blog-post_03.html

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  21. श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.

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  22. BHUT ACCHI POST.
    HTTP://VIJAYPALKURDIYA.BLOGSPOT.COM

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  23. aadarniy mam
    bahut hi sundar lagi aapki yah anuvadit post bahut hi aanand aaya.shri guru deep sinhg ji ko meri taraf sedhanyvaad kahiyega.
    aapne anuvaad hi itni khoob surti ke saath kiya hai ki padh kar maza aa gaya.
    sach me anjane me hi ham kabhi -kabhi kisi ko kuchh bhi kah dete hain jiska pachhtava baad me bahut hota hai.
    bahut hi behtreen prastuti
    sadar naman
    poonam

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  24. बहुत अच्छा अनुवाद, एक मजेदार कहानी को अनूदित कर पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

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  25. आपका बहुत शुक्रिया। इस अनुवाद के लिए

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  26. अरे वाह यह अनुवाद तो बहुत सुंदर है कहानी ऐसे बह रही थी जैसे अनुदित नही मूल हो । बधाई निर्मला जी ।

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  27. बहुत सुन्दर अनुवाद. कथा का बहुत रोचक प्रवाह...आभार

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