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Tuesday, September 28, 2010

भगत सिंह का क्षोभ

आँखों से बहती अश्रुधारा को केसे रोकूं
आत्मा से उठती़ क्षोभ  की ज्वाला को केसे रोकू
खून के बदले मिली आजादी की
क्यों दुरगति बना डाली है
हर शहीद की आत्मा रोती है
हर जन की नजर सवाली है
क्या होगा मेरे देश का कौन इसे बचाएगा
इन भ्रष्टाचारी नेताओं परं अंकुश कौन लगायेगा
दुख होता है जब मेरी प्रतिमा का
इन से आवरण उठवाते हो
क्यों मेरी कुर्बानी का इन से
मजाक उडवाते हो
पूछो उन से क्या कभी
देश से प्यार किया है
क्या अपने बच्चों को
राष्ट्र्प्रेम का सँस्कार दिया है
या बस नोटों बोटों का ही व्यापार किया है
देख शासकों के रंग ढ्ग
टूटे सपने काँच सरीखे
कौन बचायेगा मेरे देश को
देषद्रोहियों के वार हैं तीखे
मेरे प्यारे देशवासियो
अब और न समय बरबाद करो
देश को केसे बचाना है
इस पर सोव विचार करो
मुझ याचक क हृदय के उद्गार
जन जन तक् पहुँचाओ
इस देश के बच्चे बच्चे को
देषप्रेम का पाठ पढाओ
सच मानो जब हर घर में
इक भगतसिंह हो जायेग
भारत मेरा फिर से
विश्व गुरू कहलायेगा
चाह्ते हो मेरा कर्ज चुकाना
तो कलम को शमशीर बनाओ
भर दो अंगार देश प्रेम के
सोये हुये जमीर जगाओ
लिखकर एक अमरगीत
इन्कलाब की ज्वाला जलाओ

10 comments:

  1. सच मानो जब हर घर में
    इक भगतसिंह हो जायेग
    भारत मेरा फिर से
    विश्व गुरू कहलायेगा.....

    aaah ...
    nih-shabd hun
    aapki bhaavnayen seedhe dil tak
    pahunch rahi hain.
    atyant prerak rachna

    aapko hraday ki gahrayiyon se
    bahut-bahut shubh kamnayen

    aabhaar sahit

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  2. देशप्रेम पर बेहद उम्दा रचना!



    ज़रा यहाँ भी नज़र घुमाएं!
    राष्ट्रमंडल खेल

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  3. दुख होता है जब मेरी प्रतिमा का
    इन से आवरण उठवाते हो
    क्यों मेरी कुर्बानी का इन से
    मजाक उडवाते हो

    yahi ho rahaa hai!...kahan chhip gyaa hai raashtra-prem?....suMdar rachana, badhaai!

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  4. इसमें संदेह नहीं कि जिस जज्बे के साथ हज़ारों लोगों ने अदम्य शौर्य का प्रदर्शन कर मातृभूमि पर अपने प्राणोत्सर्ग किए,सत्ताधारियों ने उसकी कद्र नहीं की।

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  5. चाह्ते हो मेरा कर्ज चुकाना
    तो कलम को शमशीर बनाओ
    भर दो अंगार देश प्रेम के
    सोये हुये जमीर जगाओ
    लिखकर एक अमरगीत
    इन्कलाब की ज्वाला जलाओ
    kitna khoobsurat likha ,sach aaj aese deshbhakt kahan milenge unki kami sada rahegi ,sundar rachna .

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  6. निर्मला दीदी !


    आज पहली बार आया हूँ इस ब्लॉग पर. यह हमारा दुर्भाग्य ही है जो इस अत्यंत श्रेष्ठ और उत्तेजित कर देने वाले, गंभीर विषय वस्तु उठाने वाले ब्लॉग से दूर रहा. इसे मै आपकी कृपा मानूंगा जो अपने लिंक देकर यह उपकार किया.

    पूर ब्लॉग ही श्रेष्ठ रचनाओं से भरपूर है और देश के सपूत भगत सिंह पर रचना पढ़ कर, इन सपूतों की दुर्दशा, भावनाओं को की उपेक्षा से मन खिन्न ही नहीं वर्तमान व्यवस्थाओं के परत आक्रोशित तो उठता है. काश कोई नेता कहलाने वाला भेदिया और सत्ता का विद्रूप जोकर भी इसी पढता... कुछ समझता .....कुछ तो करता ...ये नेता रचनात्मकता और राष्ट्र भक्ति में प्रतद्वंदिता क्यों नहीं करे. इन्ह्व न जाने सद्बुद्धि कब आएगी ......

    आपकी लेखिनी को प्रणाम.

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  7. मन में देशभक्ति का जज़्बा भरने वाली एक भावपूर्ण रचना है यह...बधाई

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  8. सत्ताधारियों को अहसासा ही नही कि जिस सत्ता पर वो इतरा रहे हैं वह इन शहीदों की देन है । उन्हें ही भुला कर वे कहां जायेंगे ..................

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