भगत सिंह का क्षोभ
आँखों से बहती अश्रुधारा को केसे रोकूं
आत्मा से उठती़ क्षोभ की ज्वाला को केसे रोकू
खून के बदले मिली आजादी की
क्यों दुरगति बना डाली है
हर शहीद की आत्मा रोती है
हर जन की नजर सवाली है
क्या होगा मेरे देश का कौन इसे बचाएगा
इन भ्रष्टाचारी नेताओं परं अंकुश कौन लगायेगा
दुख होता है जब मेरी प्रतिमा का
इन से आवरण उठवाते हो
क्यों मेरी कुर्बानी का इन से
मजाक उडवाते हो
पूछो उन से क्या कभी
देश से प्यार किया है
क्या अपने बच्चों को
राष्ट्र्प्रेम का सँस्कार दिया है
या बस नोटों बोटों का ही व्यापार किया है
देख शासकों के रंग ढ्ग
टूटे सपने काँच सरीखे
कौन बचायेगा मेरे देश को
देषद्रोहियों के वार हैं तीखे
मेरे प्यारे देशवासियो
अब और न समय बरबाद करो
देश को केसे बचाना है
इस पर सोव विचार करो
मुझ याचक क हृदय के उद्गार
जन जन तक् पहुँचाओ
इस देश के बच्चे बच्चे को
देषप्रेम का पाठ पढाओ
सच मानो जब हर घर में
इक भगतसिंह हो जायेग
भारत मेरा फिर से
विश्व गुरू कहलायेगा
चाह्ते हो मेरा कर्ज चुकाना
तो कलम को शमशीर बनाओ
भर दो अंगार देश प्रेम के
सोये हुये जमीर जगाओ
लिखकर एक अमरगीत
इन्कलाब की ज्वाला जलाओ
आँखों से बहती अश्रुधारा को केसे रोकूं
आत्मा से उठती़ क्षोभ की ज्वाला को केसे रोकू
खून के बदले मिली आजादी की
क्यों दुरगति बना डाली है
हर शहीद की आत्मा रोती है
हर जन की नजर सवाली है
क्या होगा मेरे देश का कौन इसे बचाएगा
इन भ्रष्टाचारी नेताओं परं अंकुश कौन लगायेगा
दुख होता है जब मेरी प्रतिमा का
इन से आवरण उठवाते हो
क्यों मेरी कुर्बानी का इन से
मजाक उडवाते हो
पूछो उन से क्या कभी
देश से प्यार किया है
क्या अपने बच्चों को
राष्ट्र्प्रेम का सँस्कार दिया है
या बस नोटों बोटों का ही व्यापार किया है
देख शासकों के रंग ढ्ग
टूटे सपने काँच सरीखे
कौन बचायेगा मेरे देश को
देषद्रोहियों के वार हैं तीखे
मेरे प्यारे देशवासियो
अब और न समय बरबाद करो
देश को केसे बचाना है
इस पर सोव विचार करो
मुझ याचक क हृदय के उद्गार
जन जन तक् पहुँचाओ
इस देश के बच्चे बच्चे को
देषप्रेम का पाठ पढाओ
सच मानो जब हर घर में
इक भगतसिंह हो जायेग
भारत मेरा फिर से
विश्व गुरू कहलायेगा
चाह्ते हो मेरा कर्ज चुकाना
तो कलम को शमशीर बनाओ
भर दो अंगार देश प्रेम के
सोये हुये जमीर जगाओ
लिखकर एक अमरगीत
इन्कलाब की ज्वाला जलाओ
सच मानो जब हर घर में
ReplyDeleteइक भगतसिंह हो जायेग
भारत मेरा फिर से
विश्व गुरू कहलायेगा.....
aaah ...
nih-shabd hun
aapki bhaavnayen seedhe dil tak
pahunch rahi hain.
atyant prerak rachna
aapko hraday ki gahrayiyon se
bahut-bahut shubh kamnayen
aabhaar sahit
nice
ReplyDeleteदेशप्रेम पर बेहद उम्दा रचना!
ReplyDeleteज़रा यहाँ भी नज़र घुमाएं!
राष्ट्रमंडल खेल
दुख होता है जब मेरी प्रतिमा का
ReplyDeleteइन से आवरण उठवाते हो
क्यों मेरी कुर्बानी का इन से
मजाक उडवाते हो
yahi ho rahaa hai!...kahan chhip gyaa hai raashtra-prem?....suMdar rachana, badhaai!
इसमें संदेह नहीं कि जिस जज्बे के साथ हज़ारों लोगों ने अदम्य शौर्य का प्रदर्शन कर मातृभूमि पर अपने प्राणोत्सर्ग किए,सत्ताधारियों ने उसकी कद्र नहीं की।
ReplyDeleteचाह्ते हो मेरा कर्ज चुकाना
ReplyDeleteतो कलम को शमशीर बनाओ
भर दो अंगार देश प्रेम के
सोये हुये जमीर जगाओ
लिखकर एक अमरगीत
इन्कलाब की ज्वाला जलाओ
kitna khoobsurat likha ,sach aaj aese deshbhakt kahan milenge unki kami sada rahegi ,sundar rachna .
निर्मला दीदी !
ReplyDeleteआज पहली बार आया हूँ इस ब्लॉग पर. यह हमारा दुर्भाग्य ही है जो इस अत्यंत श्रेष्ठ और उत्तेजित कर देने वाले, गंभीर विषय वस्तु उठाने वाले ब्लॉग से दूर रहा. इसे मै आपकी कृपा मानूंगा जो अपने लिंक देकर यह उपकार किया.
पूर ब्लॉग ही श्रेष्ठ रचनाओं से भरपूर है और देश के सपूत भगत सिंह पर रचना पढ़ कर, इन सपूतों की दुर्दशा, भावनाओं को की उपेक्षा से मन खिन्न ही नहीं वर्तमान व्यवस्थाओं के परत आक्रोशित तो उठता है. काश कोई नेता कहलाने वाला भेदिया और सत्ता का विद्रूप जोकर भी इसी पढता... कुछ समझता .....कुछ तो करता ...ये नेता रचनात्मकता और राष्ट्र भक्ति में प्रतद्वंदिता क्यों नहीं करे. इन्ह्व न जाने सद्बुद्धि कब आएगी ......
आपकी लेखिनी को प्रणाम.
मन में देशभक्ति का जज़्बा भरने वाली एक भावपूर्ण रचना है यह...बधाई
ReplyDeleteशुक्रिया।
ReplyDeleteसत्ताधारियों को अहसासा ही नही कि जिस सत्ता पर वो इतरा रहे हैं वह इन शहीदों की देन है । उन्हें ही भुला कर वे कहां जायेंगे ..................
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