अपना दुख जब छोटा लगता है
कभी कभी किसी का दुख देख कर अपना दुख बहुत छोटा सा लगने लगता है इस लिये सब के साथ कोई दुखदायी घटना बाँटने से शायद आपको भी लगी e kआपका कोई दुख किसी से बहुत छोटा है। लगभग 15 दिन पहले की घटना है जो हमारे शहर मे घटी यूँ तो इस से भी दर्दनाक एक घटना मुझे अब भी याद है जब सारी शहर मे चुल्हे नहीं जले थे। पटियाला के एक स्कूल के बच्चे छिटियों मे पिकनिक पर भाखडा डैम आये थे । यहां सत्लुज दरिया मे वोटिंग कर रहे थे कि नाव पलट गयी बच्चे उस मे शरारतें कर रहे थे जिस से नाव का संतुलन बिघड गया और सभी बच्चे दरिया मे गिर गये। उसमे लगभग 25-30 बच्चे थे -4-5 को तो उसी समय बचा लिया गया मगर बाकी बच्चे डूब गये भाखडा डैन के गोत खोर उनकी लाशें ढूँढ 2 कर ला रहे थे और सारा शहर दरिया के किनारे जमा था। बच्चों के परिजन भी वहां पहुँचने लगे थे ये हृ्दय्विदारक सीन देख कर सब की आँखों मे आँसू थे। उस दिन हम लोग भी छुटी के बाद घर नहीं गये । परिजनों का विलाप आज भी कानों मे उसी तरह गूँजता है कोई अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा भी था। ऐसी कितनी ही घटनायें जो सामने घटी आज भी इसी तरह आँखों मे हैं अभी एक भूलती नहीं कि और घट जाती है। आज से 15 दिन पहले भी एक घटना हुयी। कुछ दोस्तों ने प्रोग्राम बनाया कि दशहरा पर सभी दोस्त नंगल मे एक दोस्त के घर इकठे होंगे और पिकनिक मनायेंगे ।इस शहर के 6-7 दोस्तों ने इकठे ही इस साल इन्जनीयरिंग पास की थी। इनका एक दोस्त करनाल से आया था। इसकी अभी कुछ दिन पहले ही नौकरी लगी थी। सभी दोस्त भाखडा देखने के बाद वोटिंग करने लगे। करनाल वाला दोस्त वोट के किनारे के उपर च्ढ कर बैठ गया गोबिन्द सागर झील बहुत बडी है। अचानक एक पानी की लहर ने जओसे ही उसे छुया वो अपना संतुलन खो बैठा और झील मे गिर गया। वोट मे कोई सुरक्षा के उपकरण भी नहीं थे। आज तक उसकी लाश नहीं मिली। माँ=बाप कितने दिन से भटक रहे हैं। उनका एक यही बेटा और एक बेटी है। बेचारे इतनी दूर बेटे की लाश के लिये बैठे हैं।ास्पताल के एक डक्टर ने उन्हें अपने घर ठहराया है। ऐसी कितनी ही मौतें देखने सुनने मे आती हैं। जो कई दिन तक दिल से जाती नहीं तब लगता है कि अपना दुख उसके दुख से छोटा है।
कभी कभी किसी का दुख देख कर अपना दुख बहुत छोटा सा लगने लगता है इस लिये सब के साथ कोई दुखदायी घटना बाँटने से शायद आपको भी लगी e kआपका कोई दुख किसी से बहुत छोटा है। लगभग 15 दिन पहले की घटना है जो हमारे शहर मे घटी यूँ तो इस से भी दर्दनाक एक घटना मुझे अब भी याद है जब सारी शहर मे चुल्हे नहीं जले थे। पटियाला के एक स्कूल के बच्चे छिटियों मे पिकनिक पर भाखडा डैम आये थे । यहां सत्लुज दरिया मे वोटिंग कर रहे थे कि नाव पलट गयी बच्चे उस मे शरारतें कर रहे थे जिस से नाव का संतुलन बिघड गया और सभी बच्चे दरिया मे गिर गये। उसमे लगभग 25-30 बच्चे थे -4-5 को तो उसी समय बचा लिया गया मगर बाकी बच्चे डूब गये भाखडा डैन के गोत खोर उनकी लाशें ढूँढ 2 कर ला रहे थे और सारा शहर दरिया के किनारे जमा था। बच्चों के परिजन भी वहां पहुँचने लगे थे ये हृ्दय्विदारक सीन देख कर सब की आँखों मे आँसू थे। उस दिन हम लोग भी छुटी के बाद घर नहीं गये । परिजनों का विलाप आज भी कानों मे उसी तरह गूँजता है कोई अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा भी था। ऐसी कितनी ही घटनायें जो सामने घटी आज भी इसी तरह आँखों मे हैं अभी एक भूलती नहीं कि और घट जाती है। आज से 15 दिन पहले भी एक घटना हुयी। कुछ दोस्तों ने प्रोग्राम बनाया कि दशहरा पर सभी दोस्त नंगल मे एक दोस्त के घर इकठे होंगे और पिकनिक मनायेंगे ।इस शहर के 6-7 दोस्तों ने इकठे ही इस साल इन्जनीयरिंग पास की थी। इनका एक दोस्त करनाल से आया था। इसकी अभी कुछ दिन पहले ही नौकरी लगी थी। सभी दोस्त भाखडा देखने के बाद वोटिंग करने लगे। करनाल वाला दोस्त वोट के किनारे के उपर च्ढ कर बैठ गया गोबिन्द सागर झील बहुत बडी है। अचानक एक पानी की लहर ने जओसे ही उसे छुया वो अपना संतुलन खो बैठा और झील मे गिर गया। वोट मे कोई सुरक्षा के उपकरण भी नहीं थे। आज तक उसकी लाश नहीं मिली। माँ=बाप कितने दिन से भटक रहे हैं। उनका एक यही बेटा और एक बेटी है। बेचारे इतनी दूर बेटे की लाश के लिये बैठे हैं।ास्पताल के एक डक्टर ने उन्हें अपने घर ठहराया है। ऐसी कितनी ही मौतें देखने सुनने मे आती हैं। जो कई दिन तक दिल से जाती नहीं तब लगता है कि अपना दुख उसके दुख से छोटा है।
वेदना असीम हो गयी ।
ReplyDeletebahut dukh hua............
ReplyDeletebahut hi maarmik hai.....
दुखद पूर्ण है यह ..
ReplyDeleteयदि ईश्वरीय विधान मान लूं,; तो मुझे एक बात नहीं समझ आती कि ईश्वर जिन्हें आयु कम देता है फिर उनमे आशावादिता, जिजीविषा, अकूत प्रतिभा, स्वप्न आदि भी कैसे देता है...जब एक जीवन समाप्त होता है तो जाने क्या-क्या ख़तम हो जाता है...हमारी अपनी इयत्ता का क्या मोल...
ReplyDeleteबहुत दुखःद है। लेकिन दुस्साहस और दुर्घटनाएँ जीवन का हिस्सा हैं। अनुशासन हो तो इन में कुछ कमी हो।
ReplyDeleteबहुत दुखद.
ReplyDeleteरामराम.
अका्ल मृत्यु सही में बहुत दुखद होती है.....लेकिन जीवन ऐसा ही होता है ।इन्सान का बस नही चलता।
ReplyDeleteआना और जाना यही जीवन है। संसार में दुखों की कमी नहीं है, वास्तव में उन्हें जब देखते हैं तब लगता है हमारा तो कोई दुख ही नहीं। सच लिखा है आपने।
ReplyDeleteजल स्वाभाविक रुप से अपनी ओर खीचता है,बच्चों को उससे सावधान करना आवश्यक है,अभी मेरे मित्र का लड़का इंजिनियरिंग के दुसरे सेमेस्टर मे था,अपने जनमदिन पर कालेज का बहाना करके नदी पर अपने दोस्तों के साथ चला गया और तीन डुबे। इकलौता था-बेचारों के जीवन का सहारा ही चला गया। ये घटनाएँ बहुत दुखद होती हैं।
ReplyDeleteऊपर वाले की मर्जी के आगे किसी की नही चलती। हमारे रायपुर में खारून नदी में शहर के वाटर सप्लाय के लिए बने डैम ने भी बहुत से लोगों को निगल लिया है, जिनमें से एक तो मेरे मित्र का ही लड़का है। वहाँ पर तैरने की मनाही है फिर भी लोग पहुँच जाते हैं वहाँ।
ReplyDeleteनिर्मला जी, संसार तो दुःखों की खान है पर हर किसी को यही लगता है कि मेरा दुःख ही संसार का सबसे बड़ा दुःख है।
is dukhad trasdi ke bare mein kya kahein.....kabhi kabhi aise kshanon ko vahan karna bahut mushkil hota hai.........bas yahin insaan ka jor nhi chalta aur tabhi lagta hai ki uska dukh kitna gahan hai.
ReplyDeleteजिंद मेरिए मिट्टी दीए ढेरिए...इक दिन चलणा...लेकिन वक्त से पहले कोई जाता है तो अपनों की वेदना असहनीय होती है...लेकिन जो जितनी सांसे लिखवा कर आया है...उतनी ही लेगा...विधि के इस विधान को कौन बदल सकता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
सही कहा आने, लोगों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया।
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
बेहतरीन प्रविष्टि । आभार।
ReplyDeleteदूसरों का दुख सुनने के बाद खुद का दुख बहुत छोटा पड़ जाता है। इस बात की पुष्टि बिकने वाले दर्द भरे गीतों एवं अन्य साहित्य समग्री से लगाया जा सकता है।
ReplyDeleteआप दुवारा लिखे दोनो किस्सो ने तो रोंगटे ही खडे कर दिये, भगवान किसी के साथ भी ऎसा ना करे, लेकिन हमे ओर बच्चो को भी साबधानी वरतनी चाहिये...बहुत उदास कर दिया आप के इस लेख ने...
ReplyDeleteWord verification को तो हटा दो, बहुत तंग करता है
ReplyDeleteबहुत दर्दनाक! बड़ा समय लगेगा संभलने में।
ReplyDeletehmmmm........kya kahun, aankhen bhar aayin
ReplyDeleteVakai Dardnaak...
ReplyDeleteकुछ चीजे इन्सान के बस में नहीं होती है ...अभी दीवाली से कुछ दिन एक ९ महीने की बच्ची ओर उसकी मां का एक्सीडेंट हुआ ..नन्ही बच्ची को छोटी दीपावली पे पट्टियों से बंधा देख मन अजीब सा हो गया ...
ReplyDeleteसही कहा अपना दुख बहुत कम है पर फ़िर भी दुनिया अपने दुख को ही बड़ा बताने में लगी है। आप संवेदनशील हैं इसलिये आपको ऐसा लगा।
ReplyDeleteHaan...washnav ja to tene kahiye...' yaad aa gaya..aur waqya padhke apne dukh to na ke barabar lagte hain...jab aise dukhse guzaree, tabhee iskee gehraayee samajh aa rahee hai..
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
:-(
ReplyDeleteI feel up set when i read about such incidents
अत्यन्त दुखद समाचार ...निर्मला जी बिल्कुल सही कहा आपने इस दुनिया में दिन प्रतिदिन ऐसी ऐसी घटनाएँ घट रही है जिनमें से कुछ ऐसी होती है की उसके सामने हमारा हर गम कम पड़ जाता है..
ReplyDeleteअक्सर ऐसा होता है और दुर्घटनाये तो जाने क्यों जाते ही पलट कर फ़िर आंखो के सामने आ जाती है।
ReplyDeletebahut dardnak ghatna jise padhte huye man aur aankhe ro padi ,aese haadso se dil dahal jaata hai ,such jeevan se badhkar kuchh nahi ,ye dard asahaniye hai ,jeevan ka aesa aaina jahan sach darwana lagata hai .
ReplyDeletebahut hi hridyaa-vidaarak ghatnaa hai
ReplyDeletelekin vidhi ke vidhaan ke aage sr jhukaana
hi padtaa hai...Patiala se bhi samvedanaaeiN
judee haiN...bachpan waheeN guzraa hai
khair...
hauslaa-afzaai ka shukriyaa
(pehli tippani kahee kho gayi hai,,shayad)
सच बता दिया आपने ,अब ऐसे वक्त तो अपना दुःख कुछ लगेगा ही नहीं
ReplyDeleteईश्वर उनका साथ दें
आपके इस लेख को पढने के बाद हमारे जीवन कि पुरानी घटना ,पुनः ताज़ी हो गयी
ReplyDeleteसटीक और सच कहा है.
ReplyDeleteदुःख न दिया जाने वाली चीज़ है मगर संवाद में बंटी इसकी करुणा सुकून की अनुभित देती है.
Ateet ki kaafi ghatnayen yaad aa gayeen :( ...shabd hi khatm ho gaye mere
ReplyDeletePankaj
bahut dukhad ghatnayen...mann bheeg gaya...
ReplyDeletebehad dukhad ghatna.....laaparwahi ke kaaran ye ghatnaayein hoti hain...
ReplyDeleteapke blog par akar bahut hi accha laga thanks for following my blog ...apse asirvad or mardashan ki abhilasha rakhti hoon ..mere blog par apka dil se swagat hai ..ati rahiyega ...thanks
ReplyDeleteकहते हैं दु:ख बांटो तो कम होते हैं. पर दु:ख रुलाते हैं. आजकल टीवी पर 26/11 की बरसी पर भुक्तभोगियों का दु:ख देख रोना आता है.
ReplyDeleteKiske munh se nivala jaayega aise samay mein
ReplyDeletebahut dukh bhari ghatna thi
बहुत मार्मिक....
ReplyDeleteलाश ना मिलना और दुखदायी होता है उम्र भर एक आश रहती है की हो सकता है बच गया हो !!! यही आश दुःख का कारन भी बनती है !!!
ReplyDeleteमन को व्याकुल कर गई आपकी पोस्ट सांड दुखी हुआ!!!! ऐसे हादसों को रोकने का उपाय होना चाहिए नाव में कम से कम कुछ तो सुरक्षा के इन्तेजाम होना अनिवार्य करना चाहिए!!!
ReplyDeleteसही कहा विप्र सता का चस्का ऐसा ही होता है जैसे सांड का चारा कंटीली झाड़ियों से भी, और कभी कभी तो दरवाजा तोड़ कर भी खाना चाहता है!!!
ReplyDeleteYeh taqlif hamesha zinda rahti hai.Kisi Apne ki mout ho jaane per bhi kai baar yakeen nahi hota, aur yadi use khatm hua na dekh lo to fir taqleef ki koi had nahi rahti. yehi taqleef bhog raha hoon pichhle 10 mahinon se.....
ReplyDelete" dard bhari ...bahut hi dukh huva ...aapki lekhnee ko salaam ..."
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
Waqaya padhke dil dahal gaya..maa baap kya haal hua hoga, soch bhi nahi sakti..Uff!
ReplyDeletehaan dardnaak wakya..........wakai aishi kai ghatnaayen ho jati hai jo sochne par mazbur bhi karti hai aur future me yah aasha bhi rahti hai ki kya aisha hua hai aur agar aisha hua hai to fir dikhta kyon nahi ..aash to lagi hi rahti hai ...
ReplyDeleteबचपन से ही हमारी माँ हमें सिखाया करती थी कि जो अपने से ज्यादा दुखी हो उसकी तरफ देखो अपना दुःख छोटा लगने लगेगा और अपने से कम सुखी इंसान कि तरफ देखो अपना सुख ज्यादा लगने लगेगा ....बचपन में ये बातें समझ नहीं आती थी पर आज भी जब वो इन्ही बातों को दोहराती हैं तो लगता है वाकई ये जादूई शब्द हैं ... आज भी अखबार में किसी माँ की आँख के तारे के एक्सीडेंट के बारे में पढ़ती हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं ...तब महसूस होती है खुदा की नेमतें जो उसने हमें दे rakhi हैं ... पर shayad hamme से adhikanshtah swarthi हो gaye हैं जो अपने ही बारे में socha karte हैं ... aisa na hota तो duniya swarg हो jaati ...
ReplyDeleteAap itna achha likhti hain,ki, kayi baar mai 2/3 baar padh leti hun....is aalekh ka dard fir ekbaar simatke aankhon se bah nikla..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए....
ReplyDeleteमन को छू गये आपके भाव।
इससे ज्यादा और क्या कहूं।
बहुत कुछ चन्द शब्दों में व्यक्त किया, आभार ।
bada swal ye hai DUKH KI JADEIN KAHAN PAR HAI ?
ReplyDeleteMANA KI SUKH KE SATH DUKH JUDA HAI DIN KE SATH RAAT JUDI HAI YADI RAAT KO DIN JAISA UJLA KIYA JA SAKTA HAI TO DUKH KI SHIDDAT BHI KAM KI JA SAKTI HAI ISKE LIYE JAROORI HAI KI HUM DUKH KI JADEIN TALASH KAREIN ..KAHAN HAIN? KAISI HAIN ? ISKE LIYE VYAPAK SATAR PAR AISE LOGON DWARA CHINTAN KIYE JANE KI JAROORAT HAI JO KAMOBESH SANSKARBADH MANSIKTA SE MUKT HOKAR CHINTAN KAR SAKEIN ...JINKI PRTIBADHATA KEWAL AUR KEWAL JEEVAN MULYON KE PRTI HO ... JINKE PAS SWIKAR AUR ASWIKAR KI VAIGYANIK KASOTI HO ...AAJ JAB HAMARE PAAS ITNI VILAKSHAN TAQNEEKEIN UPLABD HAIN TO KYA IS DISHA MEIN KOI SHURUAT HO SAKTI HAI JO BHAVI PEEDI KO ADHIK SUKHMAY AUR KAM SE KAM DUKHMAY JEEVAN DE SAKE ?
PUKHRAJ JI SE:-
ReplyDeleteISI BLOG PAR AAPKA COMMENT PADA AUR LAGA AAP JAISE LOG IS DISHA MEIN KADM UTHA SAKTE HAIN ..ISKE PEECHEY BADA KARAN HAI AAPKE CHINTAN MEIN EK HARMONY HAI .. JO SHAYAD SHASTRIY SANGEET SE AAPKO MILI HAI .. AUR BHEE BAHUT SE LOG HONGE AAPKI TARH ..DO SAL POORV VICHAR KO LEKAR YE PANKTIYAN MUJHE MADYAM BANA KAR NIKAL AAI THEEN
Vichar Safad Cheentiyon ki trah failte hain aur deewaron ki need uda dete hain ... unhein khod dalte hain chupchap.. aksmat kisi din ladkhdate hue dhah jatee hain deewarein aur badal jati hai duniya..
Sach mea bahoot Marmik ghatna rahi hogi.. Main Mehsoos kar pa rahi hun uss vakt ka vilaap.. .Kabhi Kabhi zindgai se ham kai baar kai umeede rakh lete hai.. hame tho bahoot kuch mil bhi jata hai par kuch aise hai jo shikayat bhi nahi kar paate...
ReplyDeleteहम लोग अभी भी water sport के मामलें में काफी पीछे है,सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं है ...ऊपर से लोगो की लापरवाही,ऐसी न जाने कितनी ही घटनाओ की कारण बनती है ........घटना चित्रण मार्मिक था !!!
ReplyDeletewordpress से blogspot पर अभी आया हूँ.एक रचना के साथ .....चाहता हूँ के आप उसे पढ़े और टिपण्णी दे
आपके शहर से कुछ दिन पहले गुजरा था,mcleodganj जाते वक़्त ....बहुत सुन्दर जगह है
नए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
ReplyDeleteस्वस्थ २०१० हो
मंगलमय २०१० हो
पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं
बहुत सुन्दररचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Aaj phir ekbaar aapka blog padhne chalee aayi !Ek shant, sthir sarowar ke kinare baithne ka ehsaas milta hai..
ReplyDeleteGantantr diwas kee dheron shubhkamnayen!
ReplyDeleteबेहद दुखद ...........!!!!!!!!
ReplyDeletekya kehuin.....no word to say..
ReplyDeleteso touching!
निर्मला जी, आज कल तो लोग दूसरों की खुशियों से दुखी और दूसरों के दुखों से खुश होते हैं, बहुत कम संवेदनशील लोग ही दूसरों के बड़े दुखों के आगे अपने दुखों को छोटा अंक पाते हैं, और वह भी पल भर के लिए, उपयोग कर मजे लो और भूल जाओ का दौर है यह. बहुत बहुत साधुवाद!!
ReplyDeletedukh agar kisi aour kaa thoda saa bhi mahsoos kar liyaa jaaye bas fir kyaa he vahi kaafi he..dukhi ke liye.
ReplyDeletevicharniy rachna..
ऐसी कितनी ही मौतें देखने सुनने मे आती हैं। जो कई दिन तक दिल से जाती नहीं तब लगता है कि अपना दुख उसके दुख से छोटा है।
ReplyDelete..sach mein dukh ki ghadiyon ki tasveer man se yun hi nahi jaati..... bahut gahara asar karti hain...
Bhaut shubhkamnayne....
दुखद प्रकरण
ReplyDeleteHolee kee anek shubhkamnayen!
ReplyDeletedukh sirf dukh he, chhota yaa badaa lagnaa hamaari vishuddh maansikata par aadharit he../ dard he.
ReplyDeletepad kar bahoot dookh huya achhi prastutee hai
ReplyDeleteइन घटनाओं को पढकर आँखों में आंसूं आ गए ... हम इसे ऊपर वाले की मर्ज़ी कह सकते हैं ... पर एक बात दोनों घटनाओं से साफ़ है कि दोनों बार सावधानी बरती नहीं गई थी ... छोटे बच्चे हों या जवान लड़के ... आप नाव से इतने बड़े झील में जा रहे हो ... आपने क्या सुरक्षा के इंतजाम किया है ... मैंने दुसरे देशों में देखा है कि वहां सबसे पहले सुरक्षा और सावधानी के बारे में सोचते हैं ... जाने कब हम इस तरह से सोचना सीख पाएंगे ...
ReplyDeletedukhad ghatna.........lekin kab koi chetega...kab aisee ghatnayen fir se nahi ghategi........iske liye koi fikra mand nahi..:)
ReplyDeleteMaa ko mera sadar charan spars... Maa kaisi hai aap....
ReplyDeleteLines Tell the Story of Life "Love Marriage Line in Palm"
very heart touching article .
ReplyDeleteAsha
my first visit to ur blog bt its really a gud exp.
ReplyDeleteAuron ka gham dekha to main apna gham bhoolgaya....
ReplyDelete---------
चिर यौवन की अभिलाषा..
क्यों बढ रहा है यौन शोषण?
आपने बिलकुल सच कहा.
ReplyDeleteदूसरों की तकलीफ का सही अंदाज़ा तब होता है जब हम भुक्तभोगी होते हैं.
कहा भी गया है कि
जाके पाँव न फटी बिंवाई * सो का जाने पीर पराई
- किसलय
कृपया इस शमा को भी जलाए रखें।
ReplyDelete………….
अथातो सर्प जिज्ञासा।
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
AApne bilkul sahi likhaa hai. May God help those families which have lost its dear ones. Very touching post.
ReplyDeleteA nice post .A fine peace of writing.
ReplyDeleteAsha
दिल दहला देने वाली घटना
ReplyDeleteबहुत दर्दनाक!
ReplyDelete