ye bhee dekhen

 

पसंद करें

चिट्ठाजगत

Monday, October 19, 2009

अपना दुख जब छोटा लगता है

 अपना दुख जब छोटा लगता है

कभी कभी किसी का दुख देख कर अपना दुख बहुत छोटा सा लगने लगता है इस लिये सब के साथ कोई दुखदायी घटना बाँटने से शायद आपको भी लगी e kआपका कोई दुख किसी से बहुत छोटा है। लगभग 15 दिन पहले की घटना है जो हमारे शहर मे घटी यूँ तो इस से भी दर्दनाक एक घटना मुझे अब भी याद है जब सारी शहर मे चुल्हे नहीं जले थे। पटियाला के एक स्कूल के बच्चे छिटियों मे पिकनिक पर भाखडा डैम आये थे । यहां सत्लुज दरिया मे वोटिंग कर रहे थे कि नाव पलट गयी बच्चे उस मे शरारतें कर रहे थे जिस से नाव का संतुलन बिघड गया और सभी बच्चे दरिया मे गिर गये। उसमे लगभग 25-30 बच्चे थे -4-5 को तो उसी समय बचा लिया गया मगर बाकी बच्चे डूब गये भाखडा डैन के गोत खोर उनकी लाशें ढूँढ 2 कर ला रहे थे और सारा शहर दरिया के किनारे जमा था। बच्चों के परिजन भी वहां पहुँचने लगे थे ये हृ्दय्विदारक सीन देख कर सब की आँखों मे आँसू थे। उस दिन हम लोग भी छुटी के बाद घर नहीं गये । परिजनों का विलाप आज भी कानों मे उसी तरह गूँजता है कोई अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा भी था। ऐसी कितनी ही घटनायें जो सामने घटी आज भी इसी तरह आँखों मे हैं अभी एक भूलती नहीं कि और घट जाती है। आज से 15 दिन पहले भी एक घटना हुयी। कुछ दोस्तों ने प्रोग्राम बनाया कि दशहरा पर सभी दोस्त नंगल मे एक दोस्त के घर इकठे होंगे और पिकनिक मनायेंगे ।इस शहर के 6-7 दोस्तों ने इकठे ही इस साल इन्जनीयरिंग पास की थी। इनका एक दोस्त करनाल से आया था। इसकी अभी कुछ दिन पहले ही नौकरी लगी थी। सभी दोस्त भाखडा देखने के बाद वोटिंग करने लगे। करनाल वाला दोस्त वोट के किनारे के उपर च्ढ कर बैठ गया गोबिन्द सागर झील बहुत बडी है। अचानक एक पानी की लहर ने जओसे ही उसे छुया वो अपना संतुलन खो बैठा और झील मे गिर गया। वोट मे कोई सुरक्षा के उपकरण भी नहीं थे। आज तक उसकी लाश नहीं मिली। माँ=बाप कितने दिन से भटक रहे हैं। उनका एक यही बेटा और एक बेटी है। बेचारे इतनी दूर बेटे की लाश के लिये बैठे हैं।ास्पताल के एक डक्टर ने उन्हें अपने घर ठहराया है। ऐसी कितनी ही मौतें देखने सुनने मे आती हैं। जो कई दिन तक दिल से जाती नहीं तब लगता है कि अपना दुख उसके दुख से छोटा है।


77 comments:

  1. यदि ईश्वरीय विधान मान लूं,; तो मुझे एक बात नहीं समझ आती कि ईश्वर जिन्हें आयु कम देता है फिर उनमे आशावादिता, जिजीविषा, अकूत प्रतिभा, स्वप्न आदि भी कैसे देता है...जब एक जीवन समाप्त होता है तो जाने क्या-क्या ख़तम हो जाता है...हमारी अपनी इयत्ता का क्या मोल...

    ReplyDelete
  2. बहुत दुखःद है। लेकिन दुस्साहस और दुर्घटनाएँ जीवन का हिस्सा हैं। अनुशासन हो तो इन में कुछ कमी हो।

    ReplyDelete
  3. अका्ल मृत्यु सही में बहुत दुखद होती है.....लेकिन जीवन ऐसा ही होता है ।इन्सान का बस नही चलता।

    ReplyDelete
  4. आना और जाना यही जीवन है। संसार में दुखों की कमी नहीं है, वास्‍तव में उन्‍हें जब देखते हैं तब लगता है हमारा तो कोई दुख ही नहीं। सच लिखा है आपने।

    ReplyDelete
  5. जल स्वाभाविक रुप से अपनी ओर खीचता है,बच्चों को उससे सावधान करना आवश्यक है,अभी मेरे मित्र का लड़का इंजिनियरिंग के दुसरे सेमेस्टर मे था,अपने जनमदिन पर कालेज का बहाना करके नदी पर अपने दोस्तों के साथ चला गया और तीन डुबे। इकलौता था-बेचारों के जीवन का सहारा ही चला गया। ये घटनाएँ बहुत दुखद होती हैं।

    ReplyDelete
  6. ऊपर वाले की मर्जी के आगे किसी की नही चलती। हमारे रायपुर में खारून नदी में शहर के वाटर सप्लाय के लिए बने डैम ने भी बहुत से लोगों को निगल लिया है, जिनमें से एक तो मेरे मित्र का ही लड़का है। वहाँ पर तैरने की मनाही है फिर भी लोग पहुँच जाते हैं वहाँ।

    निर्मला जी, संसार तो दुःखों की खान है पर हर किसी को यही लगता है कि मेरा दुःख ही संसार का सबसे बड़ा दुःख है।

    ReplyDelete
  7. is dukhad trasdi ke bare mein kya kahein.....kabhi kabhi aise kshanon ko vahan karna bahut mushkil hota hai.........bas yahin insaan ka jor nhi chalta aur tabhi lagta hai ki uska dukh kitna gahan hai.

    ReplyDelete
  8. जिंद मेरिए मिट्टी दीए ढेरिए...इक दिन चलणा...लेकिन वक्त से पहले कोई जाता है तो अपनों की वेदना असहनीय होती है...लेकिन जो जितनी सांसे लिखवा कर आया है...उतनी ही लेगा...विधि के इस विधान को कौन बदल सकता है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  9. सही कहा आने, लोगों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया।
    ( Treasurer-S. T. )

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन प्रविष्टि । आभार।

    ReplyDelete
  11. दूसरों का दुख सुनने के बाद खुद का दुख बहुत छोटा पड़ जाता है। इस बात की पुष्टि बिकने वाले दर्द भरे गीतों एवं अन्य साहित्य समग्री से लगाया जा सकता है।

    ReplyDelete
  12. आप दुवारा लिखे दोनो किस्सो ने तो रोंगटे ही खडे कर दिये, भगवान किसी के साथ भी ऎसा ना करे, लेकिन हमे ओर बच्चो को भी साबधानी वरतनी चाहिये...बहुत उदास कर दिया आप के इस लेख ने...

    ReplyDelete
  13. Word verification को तो हटा दो, बहुत तंग करता है

    ReplyDelete
  14. बहुत दर्दनाक! बड़ा समय लगेगा संभलने में।

    ReplyDelete
  15. कुछ चीजे इन्सान के बस में नहीं होती है ...अभी दीवाली से कुछ दिन एक ९ महीने की बच्ची ओर उसकी मां का एक्सीडेंट हुआ ..नन्ही बच्ची को छोटी दीपावली पे पट्टियों से बंधा देख मन अजीब सा हो गया ...

    ReplyDelete
  16. सही कहा अपना दुख बहुत कम है पर फ़िर भी दुनिया अपने दुख को ही बड़ा बताने में लगी है। आप संवेदनशील हैं इसलिये आपको ऐसा लगा।

    ReplyDelete
  17. Haan...washnav ja to tene kahiye...' yaad aa gaya..aur waqya padhke apne dukh to na ke barabar lagte hain...jab aise dukhse guzaree, tabhee iskee gehraayee samajh aa rahee hai..

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    ReplyDelete
  18. अत्यन्त दुखद समाचार ...निर्मला जी बिल्कुल सही कहा आपने इस दुनिया में दिन प्रतिदिन ऐसी ऐसी घटनाएँ घट रही है जिनमें से कुछ ऐसी होती है की उसके सामने हमारा हर गम कम पड़ जाता है..

    ReplyDelete
  19. अक्सर ऐसा होता है और दुर्घटनाये तो जाने क्यों जाते ही पलट कर फ़िर आंखो के सामने आ जाती है।

    ReplyDelete
  20. bahut dardnak ghatna jise padhte huye man aur aankhe ro padi ,aese haadso se dil dahal jaata hai ,such jeevan se badhkar kuchh nahi ,ye dard asahaniye hai ,jeevan ka aesa aaina jahan sach darwana lagata hai .

    ReplyDelete
  21. bahut hi hridyaa-vidaarak ghatnaa hai
    lekin vidhi ke vidhaan ke aage sr jhukaana
    hi padtaa hai...Patiala se bhi samvedanaaeiN
    judee haiN...bachpan waheeN guzraa hai
    khair...
    hauslaa-afzaai ka shukriyaa
    (pehli tippani kahee kho gayi hai,,shayad)

    ReplyDelete
  22. सच बता दिया आपने ,अब ऐसे वक्त तो अपना दुःख कुछ लगेगा ही नहीं
    ईश्वर उनका साथ दें

    ReplyDelete
  23. आपके इस लेख को पढने के बाद हमारे जीवन कि पुरानी घटना ,पुनः ताज़ी हो गयी

    ReplyDelete
  24. सटीक और सच कहा है.
    दुःख न दिया जाने वाली चीज़ है मगर संवाद में बंटी इसकी करुणा सुकून की अनुभित देती है.

    ReplyDelete
  25. Ateet ki kaafi ghatnayen yaad aa gayeen :( ...shabd hi khatm ho gaye mere

    Pankaj

    ReplyDelete
  26. apke blog par akar bahut hi accha laga thanks for following my blog ...apse asirvad or mardashan ki abhilasha rakhti hoon ..mere blog par apka dil se swagat hai ..ati rahiyega ...thanks

    ReplyDelete
  27. कहते हैं दु:ख बांटो तो कम होते हैं. पर दु:ख रुलाते हैं. आजकल टीवी पर 26/11 की बरसी पर भुक्तभोगियों का दु:ख देख रोना आता है.

    ReplyDelete
  28. Kiske munh se nivala jaayega aise samay mein
    bahut dukh bhari ghatna thi

    ReplyDelete
  29. लाश ना मिलना और दुखदायी होता है उम्र भर एक आश रहती है की हो सकता है बच गया हो !!! यही आश दुःख का कारन भी बनती है !!!

    ReplyDelete
  30. मन को व्याकुल कर गई आपकी पोस्ट सांड दुखी हुआ!!!! ऐसे हादसों को रोकने का उपाय होना चाहिए नाव में कम से कम कुछ तो सुरक्षा के इन्तेजाम होना अनिवार्य करना चाहिए!!!

    ReplyDelete
  31. सही कहा विप्र सता का चस्का ऐसा ही होता है जैसे सांड का चारा कंटीली झाड़ियों से भी, और कभी कभी तो दरवाजा तोड़ कर भी खाना चाहता है!!!

    ReplyDelete
  32. Yeh taqlif hamesha zinda rahti hai.Kisi Apne ki mout ho jaane per bhi kai baar yakeen nahi hota, aur yadi use khatm hua na dekh lo to fir taqleef ki koi had nahi rahti. yehi taqleef bhog raha hoon pichhle 10 mahinon se.....

    ReplyDelete
  33. " dard bhari ...bahut hi dukh huva ...aapki lekhnee ko salaam ..."

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

    ReplyDelete
  34. Waqaya padhke dil dahal gaya..maa baap kya haal hua hoga, soch bhi nahi sakti..Uff!

    ReplyDelete
  35. haan dardnaak wakya..........wakai aishi kai ghatnaayen ho jati hai jo sochne par mazbur bhi karti hai aur future me yah aasha bhi rahti hai ki kya aisha hua hai aur agar aisha hua hai to fir dikhta kyon nahi ..aash to lagi hi rahti hai ...

    ReplyDelete
  36. बचपन से ही हमारी माँ हमें सिखाया करती थी कि जो अपने से ज्यादा दुखी हो उसकी तरफ देखो अपना दुःख छोटा लगने लगेगा और अपने से कम सुखी इंसान कि तरफ देखो अपना सुख ज्यादा लगने लगेगा ....बचपन में ये बातें समझ नहीं आती थी पर आज भी जब वो इन्ही बातों को दोहराती हैं तो लगता है वाकई ये जादूई शब्द हैं ... आज भी अखबार में किसी माँ की आँख के तारे के एक्सीडेंट के बारे में पढ़ती हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं ...तब महसूस होती है खुदा की नेमतें जो उसने हमें दे rakhi हैं ... पर shayad hamme से adhikanshtah swarthi हो gaye हैं जो अपने ही बारे में socha karte हैं ... aisa na hota तो duniya swarg हो jaati ...

    ReplyDelete
  37. Aap itna achha likhti hain,ki, kayi baar mai 2/3 baar padh leti hun....is aalekh ka dard fir ekbaar simatke aankhon se bah nikla..

    ReplyDelete
  38. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए....
    मन को छू गये आपके भाव।
    इससे ज्यादा और क्या कहूं।
    बहुत कुछ चन्‍द शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया, आभार ।

    ReplyDelete
  39. bada swal ye hai DUKH KI JADEIN KAHAN PAR HAI ?
    MANA KI SUKH KE SATH DUKH JUDA HAI DIN KE SATH RAAT JUDI HAI YADI RAAT KO DIN JAISA UJLA KIYA JA SAKTA HAI TO DUKH KI SHIDDAT BHI KAM KI JA SAKTI HAI ISKE LIYE JAROORI HAI KI HUM DUKH KI JADEIN TALASH KAREIN ..KAHAN HAIN? KAISI HAIN ? ISKE LIYE VYAPAK SATAR PAR AISE LOGON DWARA CHINTAN KIYE JANE KI JAROORAT HAI JO KAMOBESH SANSKARBADH MANSIKTA SE MUKT HOKAR CHINTAN KAR SAKEIN ...JINKI PRTIBADHATA KEWAL AUR KEWAL JEEVAN MULYON KE PRTI HO ... JINKE PAS SWIKAR AUR ASWIKAR KI VAIGYANIK KASOTI HO ...AAJ JAB HAMARE PAAS ITNI VILAKSHAN TAQNEEKEIN UPLABD HAIN TO KYA IS DISHA MEIN KOI SHURUAT HO SAKTI HAI JO BHAVI PEEDI KO ADHIK SUKHMAY AUR KAM SE KAM DUKHMAY JEEVAN DE SAKE ?

    ReplyDelete
  40. PUKHRAJ JI SE:-
    ISI BLOG PAR AAPKA COMMENT PADA AUR LAGA AAP JAISE LOG IS DISHA MEIN KADM UTHA SAKTE HAIN ..ISKE PEECHEY BADA KARAN HAI AAPKE CHINTAN MEIN EK HARMONY HAI .. JO SHAYAD SHASTRIY SANGEET SE AAPKO MILI HAI .. AUR BHEE BAHUT SE LOG HONGE AAPKI TARH ..DO SAL POORV VICHAR KO LEKAR YE PANKTIYAN MUJHE MADYAM BANA KAR NIKAL AAI THEEN
    Vichar Safad Cheentiyon ki trah failte hain aur deewaron ki need uda dete hain ... unhein khod dalte hain chupchap.. aksmat kisi din ladkhdate hue dhah jatee hain deewarein aur badal jati hai duniya..

    ReplyDelete
  41. Sach mea bahoot Marmik ghatna rahi hogi.. Main Mehsoos kar pa rahi hun uss vakt ka vilaap.. .Kabhi Kabhi zindgai se ham kai baar kai umeede rakh lete hai.. hame tho bahoot kuch mil bhi jata hai par kuch aise hai jo shikayat bhi nahi kar paate...

    ReplyDelete
  42. हम लोग अभी भी water sport के मामलें में काफी पीछे है,सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं है ...ऊपर से लोगो की लापरवाही,ऐसी न जाने कितनी ही घटनाओ की कारण बनती है ........घटना चित्रण मार्मिक था !!!
    wordpress से blogspot पर अभी आया हूँ.एक रचना के साथ .....चाहता हूँ के आप उसे पढ़े और टिपण्णी दे

    आपके शहर से कुछ दिन पहले गुजरा था,mcleodganj जाते वक़्त ....बहुत सुन्दर जगह है

    ReplyDelete
  43. नए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
    स्वस्थ २०१० हो
    मंगलमय २०१० हो

    पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
    सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं

    ReplyDelete
  44. बहुत सुन्दररचना
    बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  45. Aaj phir ekbaar aapka blog padhne chalee aayi !Ek shant, sthir sarowar ke kinare baithne ka ehsaas milta hai..

    ReplyDelete
  46. Gantantr diwas kee dheron shubhkamnayen!

    ReplyDelete
  47. बेहद दुखद ...........!!!!!!!!

    ReplyDelete
  48. kya kehuin.....no word to say..
    so touching!

    ReplyDelete
  49. निर्मला जी, आज कल तो लोग दूसरों की खुशियों से दुखी और दूसरों के दुखों से खुश होते हैं, बहुत कम संवेदनशील लोग ही दूसरों के बड़े दुखों के आगे अपने दुखों को छोटा अंक पाते हैं, और वह भी पल भर के लिए, उपयोग कर मजे लो और भूल जाओ का दौर है यह. बहुत बहुत साधुवाद!!

    ReplyDelete
  50. dukh agar kisi aour kaa thoda saa bhi mahsoos kar liyaa jaaye bas fir kyaa he vahi kaafi he..dukhi ke liye.
    vicharniy rachna..

    ReplyDelete
  51. ऐसी कितनी ही मौतें देखने सुनने मे आती हैं। जो कई दिन तक दिल से जाती नहीं तब लगता है कि अपना दुख उसके दुख से छोटा है।
    ..sach mein dukh ki ghadiyon ki tasveer man se yun hi nahi jaati..... bahut gahara asar karti hain...
    Bhaut shubhkamnayne....

    ReplyDelete
  52. dukh sirf dukh he, chhota yaa badaa lagnaa hamaari vishuddh maansikata par aadharit he../ dard he.

    ReplyDelete
  53. pad kar bahoot dookh huya achhi prastutee hai

    ReplyDelete
  54. इन घटनाओं को पढकर आँखों में आंसूं आ गए ... हम इसे ऊपर वाले की मर्ज़ी कह सकते हैं ... पर एक बात दोनों घटनाओं से साफ़ है कि दोनों बार सावधानी बरती नहीं गई थी ... छोटे बच्चे हों या जवान लड़के ... आप नाव से इतने बड़े झील में जा रहे हो ... आपने क्या सुरक्षा के इंतजाम किया है ... मैंने दुसरे देशों में देखा है कि वहां सबसे पहले सुरक्षा और सावधानी के बारे में सोचते हैं ... जाने कब हम इस तरह से सोचना सीख पाएंगे ...

    ReplyDelete
  55. dukhad ghatna.........lekin kab koi chetega...kab aisee ghatnayen fir se nahi ghategi........iske liye koi fikra mand nahi..:)

    ReplyDelete
  56. आपने बिलकुल सच कहा.
    दूसरों की तकलीफ का सही अंदाज़ा तब होता है जब हम भुक्तभोगी होते हैं.
    कहा भी गया है कि
    जाके पाँव न फटी बिंवाई * सो का जाने पीर पराई
    - किसलय

    ReplyDelete
  57. AApne bilkul sahi likhaa hai. May God help those families which have lost its dear ones. Very touching post.

    ReplyDelete
  58. A nice post .A fine peace of writing.
    Asha

    ReplyDelete
  59. दिल दहला देने वाली घटना

    ReplyDelete
  60. बहुत दर्दनाक!

    ReplyDelete